Latest [100+] Ghalib Shayari 2023 | Ghalib Shayari In Urdu | Ghalib Shayari In Urdu

Ghalib Shayari नमस्कार दोस्तों देखा जाए तो इस दुनिया में शेरो शायरी हर किसी को पसंद होती है। और आज के इस दौर में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें शायरी पसंद है और इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो शायरी लिखते भी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की शेरो शायरी में ऐसा कौन सा नाम है जिसे हर कोई पसंद करता है। दरासल वह है मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी हिंदी में, और इसी लिए आज हम आप लोगों के लिए Mirza Ghalib Ki Shayari In Hindi लेकर आये हैं।

Ghalib Shayari

Ghalib Shayari
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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ।

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आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ
सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है।

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
वह बड़ा रहीमो करीब है मुझे यह सिफत भी आता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो हजार

मरकरी लाख आंधियां उठे वह फूल खिल के रहेंगे जो खेलने वाले हैं

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यह क्या उठाए कदम और आ गई मंजिल मजा तो जब है कि पैरों में कुछ थकान रहे

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तमाम उम्र ग़ालिब बस यही करते करते रहे धूल चेहरे पर थी
और हम आईना साफ करते रहे
गुजर जाएगा यह दौर भी काले जरा इत्मीनान तो
रख जब खुशी ना ठहरी तो गम की क्या औकात है

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कुछ इस तरह से मैंने जिंदगी को आसान कर लिया किसी से माफी मांग ली
और किसी को माफ कर दिया बेवजह नहीं रोता इश्क में कोई खा ले

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ।

फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे।

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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।

जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए।

आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे।

‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।

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Ghalib Shayari In Urdu

Ghalib Shayari
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है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था।

उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए
Mirza Ghalib

दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे

Mirza Ghalib

‘ग़ालिब’ न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर

तुम उन के वा’दे का ज़िक्र उन से क्यूँ करो ‘ग़ालिब’
ये क्या कि तुम कहो और वो कहें कि याद नहीं

ज्यादा ख्वाहिशे नहीं है अब,
बस अगला लम्हा पिछले से बेहतर हो काफी है !

जब भी टूटो अकेले में टूटना,
क्योंकि ये दुनियां तमाशा देखने में
बहुत माहिर है…

दो मुलाक़ात क्या हुई हमारी तुम्हारी,
निगरानी मे सारा शहर लग गया !

खुद को किसी की अमानत समझकर,
हर लम्हा वफादार रहना ही इश्क़ है !

किसी ने पूछा इश्क़ हुआ था,
हम मुस्कराकर बोले आज भी है !

मेरी ख्वाहिशें ज्यादा थी,
और उसकी जरुरते…!

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए !

इन हाथों कि लकिरों पर मत जा ‘गालिब’,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते..!

इश्क़ में नामकरण का मजा ही अलग है,
वो जिस नाम से भी बुलाए, अच्छा लगता है !

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती

तुम्हें नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल,
हमारे हाथ में कुछ है , मगर है क्या कहिये,
कहा है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन,
सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये।

Ghalib Shayari In Urdu

Ghalib Shayari
Ghalib Shayari

हालत कह रहे है मुलाकात मुमकिन नहीं,
उम्मीद कह रही है थोड़ा इंतज़ार कर।

ज़ाहे-करिश्मा के यूँ दे रखा है हमको फरेब,
की बिन कहे ही उन्हें सब खबर है, क्या कहिये,
समझ के करते हैं बाजार में वो पुर्सिश-ऐ-हाल,
की यह कहे की सर-ऐ-रहगुज़र है, क्या कहिये।

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि,
हाँ रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।

हमें तो रिश्ते निभाने है,
वरना वक़्त का बहाना बनाकर,
नज़र अंदाज करना हमें भी आता है।

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।

तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हाँ मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना ज़माने ने,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।

मिर्ज़ा ग़ालिब पुस्तकें

Ghalib Shayari
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दिया है दिल अगर उस को, बशर है क्या कहिये,
हुआ रक़ीब तो वो, नामाबर है, क्या कहिये,
यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे,
काजा से शिकवा हमें किस क़दर है, क्या कहिये।

फर्क नहीं पड़ता वो कितनी पढ़ी लिखी है,
माँ है वो मेरी, मेरे लिए सबसे बड़ी है।

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